मान लीजिए, आतंकवाद के खिलाफ लड़ी गयी जंग में भारत को पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों को तबाह करने में कामयाबी मिल जाती है।

फिर आगे क्या? क्या मैं कुछ सवाल आपसे पूछ सकता हूँ?

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मेरे दोस्त और मुझे जानने वाले लोग ही आज मुझे पाकिस्तानी और गद्दार कहके पुकार रहे हैं। वे मुझसे नाराज़ हैं। उनका कहना हैं की देश की इस कठिन परिस्थिति में मैं युद्ध के खिलाफ बात करके भारत के शत्रु की भांति आचरण कर रहा हूँ। उनका अपना ही आज उनके नज़रों में ‘’घर का भेदी’’ और ‘’दुश्मन’’ बन गया है। कल तक जो मेरे इतने करीब थे आज वे ही मुझे सबक सिखाने की बात करने लगे हैं।

गलती मेरी ही हैं। मैं विश्व में होने वाले समस्त घटनाओं के जानकार, सर्वज्ञानी तो हूँ नहीं, जिसे सब पता हो। फिर क्या ज़रुरत थी ऐसे मामलों में मुझे कुछ कहने की? आजकल तो राह चलते भी डरने लगा हूँ, न जाने कब किससे मार खा जाऊँ!

किसी भी परिस्थिति में मैं अपने आपको युद्ध-विरोधी ही पाता हूँ। इसके बावजूद, पाकिस्तान के साथ भारत के बिगड़ते रिश्ते में मैंने खुद को भाजपा की नीतियों के समर्थन में पाया। हांलांकि मैं पाकिस्तान के उन तमाम आतंकवादी ठिकानों में बम फेंके जाने के भाजपा के इस फैसले से पूरी तरह सहमत नहीं हूं, लेकिन केवल उनकी देशभक्ति का सम्मान करने के लिए मैंने अपनी युद्ध-विरोधी सोच को युद्ध-परस्त सोच में तब्दील कर दिया। चलिए आज इन दोनों देशों में एक युद्ध हो जाने देते हैं। उनके समस्त आतंकवादी ठिकानों पर ताबड़तोड़  बम बरसाकर उन्हें ध्वस्त कर डालते हैं जिससे जैश के साथ-साथ जितने भी दूसरे चरमपंथी संगठन हैं उन्हें कड़ा से कड़ा सबक मिल सके।

अपने पिछले लेख में मैंने पुलवामा हमले में अपने देश के शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हुए उन पर हुए इस कायरतापूर्ण हमले कि कड़ी निंदा की थी। उससे पहले मैंने कभी खुद को इतना ज़्यादा दुःखी, लाचार और बेबस नहीं पाया था। उस लेख में अपनी इस भावना को मैं आपके साथ साझा कर चुका हूँ। अपने बहादुर जवानों कि शहादत को हम बेकार नहीं जाने देंगे। खून के बदले खून चाहिए। और उस नज़रिये से देखा जाये तो पाकिस्तान में बसे सभी आतंकी शिविरों को तबाह करने का नतीजा भी अच्छा ही होगा।

पार्थ बनर्जी.

ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क

Translated by: Moly Mukherjee Gupta, Southampton, U.K.